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भारत में एयरलाइंस क्यों नहीं टिक पातीं? प्राइवेट एविएशन का 30 साल का कड़वा सच

On: December 5, 2025 12:03 PM
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भारत का एविएशन सेक्टर दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन हैरानी की बात है कि यही देश एयरलाइंस के लिए सबसे बड़ा कब्रिस्तान भी बन चुका है।
पुराना मज़ाक आज भी सही साबित होता है—
“अगर आप जल्दी छोटी पूंजी बनाना चाहते हैं, तो बड़ी पूंजी लेकर एयरलाइन शुरू कीजिए।”

1991 में उदारीकरण के बाद से अब तक भारत में लगभग 24 से ज़्यादा एयरलाइंस बंद हो चुकी हैं।
ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस से लेकर गो फर्स्ट तक—ज्यादातर कंपनियां कर्ज, कोर्ट केस और ग्राउंड पर खड़े जहाज़ों के बोझ में डूब गईं।


1990 का पहला बड़ा झटका

1991 से पहले भारतीय आसमान पर पूरा कब्जा सिर्फ सरकारी एयरलाइंस का था।

  • एयर इंडिया: विदेशों के लिए
  • इंडियन एयरलाइंस: घरेलू उड़ानों के लिए

प्राइवेट कंपनियों को एंट्री की इजाजत ही नहीं थी।

लेकिन 1991 के आर्थिक संकट और फिर उदारीकरण के बाद हालात बदल गए।
नियम ढीले हुए और कई नई प्राइवेट एयरलाइंस बाजार में आ गईं।

1992 में ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस पहली प्राइवेट शेड्यूल्ड एयरलाइन बनी। इसके बाद जेट, दमानिया, मोदीलुफ़्त, एनईपीसी जैसी कंपनियां भी उतर पड़ीं।
सबका लक्ष्य एक ही था: इंडियन एयरलाइंस को कड़ी टक्कर देना।
बेहतर सेवा, नए विमान और कम किराया—सब कुछ देने की कोशिश की गई।
लेकिन दशक पूरा होते-होते इनमें से ज्यादातर कंपनियां गायब हो चुकी थीं।


तेज़ उड़ान, छोटी उम्र

नई एयरलाइंस तेज़ी से शुरू हुईं, लेकिन उतनी ही तेजी से बंद भी हो गईं।

● ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस की ट्रैजिक कहानी

  • इंडियन एयरलाइंस से भी सस्ता किराया दिया
  • 1995 तक बैंक ने लोन देना बंद किया
  • फंड खत्म हुआ, जहाज़ ग्राउंडेड
  • मालिक थाकिउद्दीन वाहिद की हत्या → आज भी अंडरवर्ल्ड का शक
  • 1996 में कंपनी पूरी तरह बंद

● दमानिया एयरलाइंस की गलती

  • छोटे रूट पर प्रीमियम सेवा, गरम खाना, ज्यादा लेग रूम
  • लेकिन किराया इतना कम था कि खर्च निकल ही नहीं पाया
  • सिर्फ चार साल में नुकसान इतना बढ़ा कि 1997 में दोनों विमान सहारा को बेचकर कंपनी बंद करनी पड़ी

● मोदीलुफ़्त और एनईपीसी

  • यात्रियों को खींचने के लिए किराए हास्यास्पद स्तर तक गिरा दिए
  • कैश खत्म, कर्ज बढ़ा, और कुछ ही सालों में दोनों कंपनियां डूब गईं

सहारा: सबसे बड़ी उम्मीद, सबसे बड़ा नुकसान

1993 में लॉन्च हुई एयर सहारा उस दौर की सबसे महत्वाकांक्षी एयरलाइन थी।

  • मुंबई–दिल्ली किराया सिर्फ ₹2,999,
    जबकि इंडियन एयरलाइंस ₹6,000 से अधिक ले रही थी।
  • शुरुआत में बड़ा धमाका, चार नई Boeing 737-400 लीज पर लीं।

लेकिन 1997–98 में एशियन फाइनेंशियल क्राइसिस आया।

  • रुपया गिरा, डॉलर मजबूत
  • लीज किराया 20% तक बढ़ गया
  • हर महीने भारी नुकसान शुरू

जान बचाने के लिए सहारा को पहले 49% हिस्सा जेट एयरवेज को बेचना पड़ा, फिर 2007 में पूरी एयरलाइन बेची और नाम पड़ा जेटलाइट
2019 में जेट एयरवेज बंद हुई तो जेटलाइट भी साथ ही खत्म हो गई।

इस तरह सहारा दो बार खत्म होने का रिकॉर्ड बना गई।


क्यों असफल होती हैं भारत की एयरलाइंस?

भारत में एयरलाइंस के लगातार फेल होने के पीछे कुछ आम वजहें हैं:

1. अत्यधिक कम किराया

यात्रियों को लुभाने के लिए कंपनियां किराया इतना कम कर देती हैं कि उनका खुद का खर्च भी नहीं निकलता।

2. महंगा संचालन (Operational Cost)

  • हवाई ईंधन (ATF) दुनिया में सबसे महंगा
  • हवाई अड्डों के चार्ज भी बेहद ज्यादा
  • विमान की लीज डॉलर में, लेकिन कमाई रुपये में → भारी घाटा

3. कड़ी प्रतिस्पर्धा

हर नई कंपनी कम दाम पर टिकट बेचने के चक्कर में खुद ही डूब जाती है।

4. खराब प्रबंधन और गलत फैसले

कई कंपनियों के पास अनुभव नहीं होता या वे सही वित्तीय प्लानिंग नहीं कर पातीं।

5. विलंबित सरकारी नीतियां

कई बार नियम बदलने, मंजूरी मिलने या टैक्स में राहत मिलने में देर होती है।


नतीजा

भारत में एविएशन मार्केट बढ़ता जा रहा है, लेकिन एयरलाइंस उतनी ही तेजी से खत्म हो रही हैं।
जब तक दाम, खर्च और मैनेजमेंट का संतुलन नहीं बनेगा,
भारतीय आसमान नए सपनों को बुलाता रहेगा… और कई सपने वहीं टूटते भी रहेंगे।

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